एक शिक्षक जो जीना सिखाता है

हम जब भी अपने शिक्षकों को देखते हैं या याद करते हैं तो कहते हैं “इन्होंने हमें गणित पढ़ाया उन्होंने हिंदी पढ़ाई लेकिन मैंने इस शिक्षक के लिए कभी ऐसा नहीं सुना”।
मैंने उन विद्यार्थियों के चेहरे पर गर्व देखा जो कहते हैं कि “हमे स्वप्निल सर ने पढ़ाया है”। मैं इसे दुर्भाग्य कहूँ कि कभी मुझे उनसे पड़ने का अवसर नही मिला या इसे सौभाग्य कहूँ कि “अब हर कदम पर उनका मार्गदर्शन मिलता रहता है”। 2015 के पहले तक कई किस्से सुनें, बहुत नाम सुना पर कभी स्वप्निल सर को साक्षात सुनने का मौका नही मिला। यूट्यूब पर ही सुना था सर को
एक दिन एक व्यक्ति ने पूछा कि स्वप्निल सर कौन हैं बहुत सुना है उनके बारे में?
हम कॉलेज के कैंपस में ही खड़े हुए थे मैने सामने खड़ी एक पुरानी स्कूटर की ओर इशारा करते हुए कहा कि उस स्कूटर से उस मर्सिडीज़ तक का सफर 7 सालों में तय क

रने के बाद आज भी किसी स्टूडेंट की बाइक पर बैठ कर चले जाते हैं, वो स्वप्निल सर हैं।
कहते हैं कि स्वप्निल सर की क्लास में कभी अटेंडेंस लेने की जरूरत नही पड़ती, वो कोई विषय नही पढ़ाते बल्कि जिंदगी पढ़ाते हैं। अपने छात्रों की निजी समस्याओं को भी इतनी सहजता से सुनते हुए देखा है जैसे कोई दोस्त सुनता हो।

“लिखने को बहुत है पर जिन्होंने इतिहास लिखा है उन पर मैं कितना लिख सकता हूं।”

शिक्षक दिवस पर नमन 🙏🙏🙏

माफ करना आसिफा

महज 8 साल की उम्र
रूह कांप उठती है जब इस तरह की घटना सुनने में आती है।

अरे धिक्कार है ऐसी समाज पर
घृणा आती है ये सोच कर कि कैसी समाज मे रह रहे हैं हम
बलात्कार जैसी भीवत्स और घृणात्मक घटना पर न्याय मांगने के लिए दर-2 की ठोकरें खानी पड़ती है।

किस मुंह से हम अपने आप को 21वी सदी की महाशक्ति बनने का ख्वाब देखते हैं, जब अपने घर की बेटियों की सुरक्षा नही कर सकते। इसमे दोष किसी और का नही हमारा ही है बलात्कार जैसे नीच काम को करने की मानसिकता वाले लोग हमारे ही बीच मे हैं हमारे साथ रहते हैं। क्या हम इतने लाचार हैं कि एक विधायक जिसे जनता की सेवा की जिम्मेदारी मिली है उसे सजा न दिलवा सकें, एक 8 साल की बच्ची के हत्यारे को फांसी के फंदे तक ना पहुँचा सकें।

बलात्कार सिर्फ दिल्ली में निर्भया,
ग्वालियर में 4 साल की गुड़िया,

#उन्नाव में उस महिला,

और #कठुआ में आसिफा का ही नही हुआ

बल्कि हमारी पूरी समाज का हुआ है, एक बलात्कारी सिर्फ लड़की की इज़्ज़त पर हाथ नही डालता बल्कि पूरी समाज की इज़्ज़त पर हाथ डालता है, हमारी कानून व्यवस्था पर हाथ डालता है, हमारी छोटी मानसिकता पर हाथ डालता है वो इस कृत्य से साबित करता है हमारा समाज नपुंसक है।

एक फ़िल्म से हमारी संस्कृति का अपमान होता है अब किसी #करनीसेना का खून नही खौला?

माफ करना आसिफा हम सब तुम्हारे गुनाहगार हैं

तुम यहाँ भी हो इस नीच दुनिया से दूर ही रहना

#JusticeForAsifa #Justice #unnav

गणतंत्र दिवस कैसे मनाऊं???

धर्म और जाति के नाम पर देश को बांटा जा रहा है गुंडे नहीं गली मोहल्ले के लोफर अपने आप को पहलवान समझ रहे हैं आये दिन देश की संपत्ति और देश के लोगों को नुकसान पहुंचाना उनके लिए मजाक बन गया है, जिस करणी सेना का कुछ महीने पहले तक नाम भी नहीं सुना था आज मध्यप्रदेश के छोटे-छोटे तहसीलों में भी उनके पदाधिकारी बने लोग गुंडागर्दी कर रहे हैं।

आज ऐसी ही एक घटना से इंदौर में मेरा साक्षात्कार हुआ

MG रोड जैसे चहल-कदमी वाले शहर के सबसे प्रमुख सड़क मार्ग पर तथाकथित करणी सेना नाम की संस्था के गुंडों ने हू-हल्ला किया, शहर का माहौल बिगाड़ने की कोशिश की और यह सब पुलिस के संरक्षण में होता हुआ दिखाई दिया। पुलिस उनको संरक्षण दे रही थी और जब यह दुकानों और शोरूमों को बंद कराने के लिए अपना उग्र रूप दिखा रहे थे तब हाथ पर हाथ धरे उनकी इस लीला को देख रही थी।

कट्टरपन, भेदभाव, क्षेत्रवाद, जातिवाद और धर्म के नाम पर देश को बांटने और तोड़ने वाले लोगों को सबसे पहले देश छोड़ देना चाहिए उन्हें कोई अधिकार नहीं मेरे भारत के साथ ऐसी हरकत करें और सरकारों को यह समझ लेना चाहिए कि ऐसे लोगों को संरक्षण देकर देश का भविष्य खतरे में डाल रहे हैं।

अगर मेरे देश के बच्चे दिन दहाड़े सड़कों पर भी सुरक्षित नही हैं और कुछ टटपुंजिये गुंडों से उनकी जान को खतरा है तो कैसे मनाऊं गणतंत्र दिवस??????

वो दो आंखें और हम (भाग 1)

अक्सर जिंदगी में कोई अचानक से आकर दिल और दिमाग पर कब्ज़ा कर लेता है, कई बार तो उस शख्स को भी मालूम नही होता।

बात लगभग 10-11 साल पहले की है, मेरी उम्र 15-16 साल की होगी। जिंदगी एक मासूम बच्चे के समान आराम से कट रही थी
ना सजने संवारने का शौक
ना किसी की परवाह
गली मोहल्ले की क्रिकेट टीम

अचानक से 2-3 बार एक लड़की से टकराना हुआ या यूँ कहें कि उसकी तरफ ध्यान सा गया, अक्सर मंदिर में दिखती थी।
बड़ी-2 आँखें जिनमे हमेशा काजल लगा हुआ,
मासूम सा चेहरा,
साथ वालों से हँसी मजाक करती हुई।

हम जवानी की दहलीज पे कदम रख ही रहे थे तो इस तरह का आकर्षण स्वाभाविक था, धीरे-2 दोस्तों ने छेड़ना शुरू किया अब वो ना होते हुए भी सामने होने लगी।

कुछ दोस्तों से, कुछ अपने आस-पास से पता लगाया तो मालूम हुआ कि मैडम उम्र में बड़ी हैं, अपने स्कूल की टॉपर हैं आधे अरमानों ने तो वहीँ दम तोड़ दिया।

फिर धीरे-2 छुप कर देखना, साइकिल से मीलों तक उसे देखने जाना, उसके घर के चक्कर लगाना।
अक्सर छोटे शहरों में जैसा होता गई वैसा ही कुछ होने लगा था।

2 साल तक कुछ ऐसा ही चला, फिर पता चला वो बाहर पड़ने चली गई, एक याद रह गई, वो आँखें सामने छोड़ गई

मन में बात ना कर पाने की टसक रह गई,,,,,

और रह गई “वो दो आँखें और हम”……

दमन होती हुई छात्र राजनीति

भारतीय राजनीति में छात्र राजनीति का हमेशा से ही वर्चस्व रहा है। वर्तमान में भी कई बड़े नाम ऐसे हैं जो छात्र राजनीति से ही उभर कर आये हैं।।
लेकिन अब समय बदलने लगा है या यूँ कहें कि बदला जा रहा है,
अब सामान्यतः राजनीती में चाटुकारिता और वंशवाद से ही नेता निकल कर आ रहे हैं। अधिकांश नेताओं के बच्चे विदेशों से पढ़ाई पूरी करते हैं और वापिस आकर राजनीती को विरासत की तरह अपना लेते है, हालाँकि उनमे से कुछ लोग अपने आप को सही साबित करते हैं और कुछ को जबरन देश पर थोप दिया जाता है।

नेतृत्व क्षमता, राजनितिक समझ और जनसेवा का भाव प्रत्येक व्यक्ति में नही होता और अगर कोई युवा अपने आप को छात्र राजनीति में उपरोक्त गुणों के साथ साबित कर देता है तो उसे राजनीती में आकर प्रतिनिधित्व करने का मौका अवश्य मिलना चाहिए।।

छात्र संघ चुनावों पर प्रतिबंध और इस तरह से शैक्षणिक संस्थानों में राजनितिक हस्तक्षेप से सरकार युवाओं को राजनीती में आने मंच ही ख़त्म कर देगी और फिर राजनीती पर पूरी तरह से चांटुकारिता और वंशवाद का कब्ज़ा हो जायेगा जो कि भविष्य में नुकसानदेह साबित हो सकता है।।